निहाल सिंह वाला (Jagvir Azad)


श्री बालाजी परिवार एवं लॉयनस क्लब निहाल सिंह वाला के सहयोग से दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से “अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस” के उपलक्ष्य में गुरु गोबिंद सिंह स्टेडियम निहाल सिंह वाला में अपने स्वास्थ्य जाग्रति कार्यक्रम “आरोग्य”के अंतर्गत निःशुल्क “विलक्षण योग शिविर”का आयोजन किया गया। जिसमें संस्था की ओर से श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य योगाचार्य स्वामी विज्ञानानंद जी ने भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि योग की महानता से परिचित कराते हुए योग साधकों को बताया कि प्रत्येक राष्ट्र अपनी किसी ना किसी अमूल्य व उत्कृष्ट धरोहर से विश्व के मानस पटल पर अपनी विशेष पहचान बनाता है। परंतु यदि विश्व विरासत की बात की जाए तो गर्वोक्त भाव से यह कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण विश्व में आर्यावर्त भारतीय योग मनीषियों द्वारा प्रदत्त योग पद्धति को उत्कृष्ट विरासत के रूप में सर्वसम्मति से समग्र राष्ट्रों द्वारा अग्रगण्य स्वीकार किया गया है। योग की रहस्यात्मक विवेचना पर प्रकाश डालते हुए स्वामी जी ने बताया कि योग प्रकृति द्वारा मनुष्य को दिया गया अनमोल उपहार है, जो जीवन भर मनुष्य को प्रकृति के साथ जोड़कर रखता है। यह शरीर और मस्तिष्क के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए और इन दोनों को संयुक्त करने का सबसे अच्छा अभ्यास है। यह एक व्यक्ति को सभी आयामों पर, जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और बौद्धिक स्तर पर नियंत्रण के द्वारा उच्च स्तर की संवेदनशीलता प्रदान करता है। यह लोगों द्वारा किया जाने वाला व्यवस्थित प्रयास है, जो पूरे शरीर में उपस्थित सभी अलग-अलग प्राकृतिक तत्वों के अस्तित्व पर नियंत्रण करके व्यक्तित्व में सुधार लाने के लिए किया जाता है। अतः बिना किसी समस्या के जीवन भर तंदुरुस्त रहने का सबसे अच्छा, सुरक्षित, आसान और स्वस्थ तरीका योग ही है। इसके लिए केवल शरीर के क्रियाकलापों और श्वास लेने के सही तरीकों का नियमित अभ्यास करने की आवश्यकता है। यह शरीर के तीन मुख्य तत्वों; शरीर, मस्तिष्क और आत्मा के बीच संपर्क को नियमित करता है। यह शरीर के सभी अंगों के कार्यकलाप को नियमित करता है और कुछ बुरी परिस्थितियों और अस्वास्थ्यकर जीवन-शैली के कारण शरीर और मस्तिष्क को परेशानियों से बचाव करता है। यह स्वास्थ्य और आन्तरिक शान्ति को बनाए रखने में मदद करता है।अच्छे स्वास्थ्य प्रदान करने के द्वारा यह हमारी भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करता है, ज्ञान के माध्यम से यह मानसिक आवश्यकताओं को पूरा करता है और आन्तरिक शान्ति के माध्यम से यह आत्मिक आवश्यकता को पूरा करता है, इस प्रकार यह हम सभी के बीच सामंजस्य बनाए रखने में भी मदद करता है। स्वामी जी ने पातंजलि “योग सूत्र” के अनुसार उपस्थित साधकों को ताड़ासन, तिर्यक ताड़ासन, दण्डासन, कटिचक्रासन, अर्द्ध चंद्रासन, द्विचक्रिकासन, भुजंगासन, नाड़ीशोधन, अनुलोम विलोम प्राणायाम इत्यादि का विधिवत् अभ्यास करवाते हुए इनके वैज्ञानिक पक्ष द्वारा दैहिक लाभों से परिचित भी करवाया। भारतीय संस्कृति की मर्यादा बनाये रखते हुए कार्यक्रम का आरम्भ विधिवत् मंत्रोच्चारण के साथ हुआ। सभी साधकों ने दैहिक आरोग्यता से परिपूर्ण कार्यक्रम का पूर्णतः लाभ प्राप्त किया।